अनजाने से सपनो के पीछे भागती रहती हैं तू ,
न जाने किसकी तलाश मे भटकती रहती हैं |
न जाने कहाँ हैं तेरी वो मंजिल ,
कहती हैं देखा तो नहीं उसे, उसकी छवि हैं धूमिल |
अनजाने से रिश्तो के पीछे भागती जाती है
अपने आप से ही अंजन हैं दूसरो को क्यों तलाशती हैं|
ख़ुद मैं ही खो सी गई है ,मंजिल के अलावा किसी की परवाह नहीं है
तेरे पास जो हैं उसेपहचान, अनजान सपनो के पीछे क्यों भागती है |
दीवानी हैं उसके लिए जिसेछवि कभी देखि नहीं
ढूँढती हैं उसे जिसका अस्तित्व कहीं हैं ही नही|
उसे ढूँढना मंजिल बना चुकी हैं,
कितने रिश्तो को तू यूहीं गवा चुकी हैं |
अनजान कब तक बनी रहेगी
कब तक रिश्तो के इन धागों को तोड़ती रहेगी
आब संभल जा ओ दीवानी
वो ही है तेरा जिसने तेरी कदर हैं जानी |
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- Biren
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