Tuesday, January 29, 2008

सपने

आँखें बंद करने से डरता हूँ , सोने से डरता हूँ
अँधेरे से नहीं ही भूत से मैं सपनो से डरता हूँ |

ये सपने जाने क्या क्या दिख्लायेंगे
zindagi को बदला बदला बतलायेंगे |

सपने हकीकत से परे हैं जो, हकीकत जाने क्यों लगते हिईं वो
शायद कुछ आइसे सपे ही हम देखना चाहते हैं,इसीलिए ऐसे सपने आते हैं |

सपनो मैं क्यों हर चीज़ लगती है परायी मुझे, अपने तो कहीं दिखते ही नहीं मुझे
कभी क्या पूरे भी होतें हैं ये सपने , इनमें हरदम ढूँढा करता हूँ मैं आपने |

दोस्त, साथी कोई भी बस आपने जैसा हो
मैं चाहता हूँ मेरा हर सपना बस ऐसा ही हो|

गर देखता हूँ मैं कोई ऐसा सपना, जिसमें दिखे मुझे कोई अपना
तो लगता हैं मुझको ये डर कहीं सपना टूट जाये और zindagi बन जाये फिर से बंजर |

इसलिए मैं आँखें बंद करने से डरता हूँ , सोने से डरता हूँ
अँधेरे से नहीं ही भूत से मैं सपनो से डरता हूँ |

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Bhilai/Kota/Mumbai, Chattisgarh/Rajasthan/Maharashtra, India
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