Tuesday, April 1, 2008

पता नहीं

अपने मैं ही उलझा उलझा रहता हूँ हमेशा
ख़ुद से ही लड़ता रहता हूँ हमेशा |

ख़ुद की ही सोच को बार बार बदलता रहता हूँ
न जाने मैं अपने अंदर के किस शख्स से बेखबर हूँ


ख़ुद से ख़ुद को कोसने को कहता हूँ
खुशी होता है तो ख़ुद को भूल जाता हूँ

जोड़ना चाहता हूँ रिश्तेमैं पर न जाने क्यों किसी पे विश्वास न कर पाता हूँ,
इसलिए शायद ख़ुद मी खोया रहता हूँ दूसरो की आपबीती सुनता हूँ पर अपनी नहीं सुना पाता हूँ

झून्झता रहता हूँ , ख़ुद को तलाशने मैं और ख़ुद से नाखुश होजाता हूँ
आब तक अनजान हूँ ख़ुद से पर हार नहीं मानी अभी भी ख़ुद को ख़ुद मैं तलाशता हूँ |


"पता नहीं" ....लिखी क्यों पाता नहीं :p
Biren

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