न जाने किस झूटी परछाई के पीछे भागता रहता हैं ये मेरा मन
न देख कभी उसे फ़िर भी लगे उसका चेहरा देखा देखा, अपना सा
न छुआ उसने मुझे कभी फ़िर भी न जाने क्यों लगता हैं उसकी छुअन को पहचानता हूँ
नही मिला उससे पर लगता हैं सदियों से उसी के साथ रहा हूँ
उसकी सौंधी सौंधी खुशबू को बस महसूस कर ही लेता हूँ
न जाने कब होगी उससे मुलाकात उस छुअन, खुशबू का सत्य मैं आभास करूंगा
डरता हूँ वो परछाई कहीं खो न जाए मन के किसी कोने मैं, वो खुशबू, छुआन भुला न दे ये दिमाग या भूल जाऊँ मैं
ज़िंदा रखना चाहता हूँ उस छवी उस परछाईी को अपने अंतर्मन मैं
कहते हैं लोग मुझे की तुम पागल हो गए हू अनजाने सी छवी के पीछे आपने जीवन को व्यर्थ कर रहे हो
उन्हें कैसे समझाऊ ये जीवन उस छवी के बिन व्यर्थ हैं विलीन है , उसको सोचे बिन टू शायद मैं जी ही नहीं पाऊँगा
उस चहरे को पास से देखना चाहता हू , महसूस करना चाहता हूँ , पर न जाने वो चेरा इस भीड़ मैं कहाँ खो गया हैं
शायद वो चेहरा किसी पराये के लिए अपना हो गया हैं पता नहीं होगी भी या नहीं मुलाकात उस परछाई से
न जाने इस झूटी परछाई के पीछे क्यों भगता रहता हैं ये मेरा मन
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the poison in me
- Biren
- Bhilai/Kota/Mumbai, Chattisgarh/Rajasthan/Maharashtra, India
- I AM A Restless soul a dreamer .....wanna be the best ... ....singing,,, talking ,,,, chatting ,,,,, photography ,,, Sketching ...trekking. DRAMATICS (ACTING/Writing/Direction)....etc etc...these things define me ! Peace! Change the world
4 comments:
बहुत ही सुन्दर प्रयास है...भाव ही भाव हैं, इनमें कहीं-कोई गलती नहीं होती सिवाय विधा के नियमों को छोड़ के. लिखते रहिये. शुभकामनायें.
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उल्टा तीर
बढ़िया पोस्ट
wow u write awesome
:P Biren
Bahut achchhe dost
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