Thursday, April 23, 2009

ख्याल

कुछ दिन पहले, अपने ज़हन के मकान को टटोल रहा था
अँधियारा था वहाँ, एक टूटा दरवाज़ा था जिसपे दस्तक भी न दी जा सके
दीवारें बेजान बेरंग हो चुकी थी, शायद कुछ कहना चाहती थी , पर मैं अनजान सा बना रहा
हर हिस्सा सड़ चुका था, ये माकन चरमरा रहा था....
माडर्न लाइफ, बेबात के झगडे, और ऐसे ही न जाने कितनी दीमकों ने इस माकन का अस्तित्व ख़त्म कर दिया था
मैं और आगे बढ़ा तो, वो रिश्तो के धागों से बुना चादर दिखी, जिसे समय के कीडे ने मुँह मैं जकडा हुआ था
वो इस चादर को लघभग साफ़ कर ही चुका था जो बचा था वो बस चंद लीरें थी
जो इस चादर से अपने आखरी धागे से जुड़ी थी
मैं यहाँ कुछ देर रुका सोचा कुछ धागों मैं गांठ बाँध दूँ, पर न जाने वो अजीब सी गन्ध मुझे अपने ओउर खिंच ले गई
जब गंध सबसे तेज़ हुई तो मैं रुका देखा जहाँ खड़ा था वहां तहखाना था, उसका दरवाज़ा खोला
देख वहां पर मेरा मासूम बचपन महक रहा था, कुछ जाने पहचाने से खिलोने के साथ चहक रहा था
तभी आहट हुई, वो महक मद्धम हुई मैंने तहखाने के दरवाज़े को देखा वो बंद होता जा रहा था
और उसकी कर्हाने की आवाज़ सुन कर भी मुझे मज़ा आ रहा था
मैंने एक बार तो भाग के उस दरवाज़े से बहार निकलने की सोच मैं पढ़ा रहा
पर अपने मासूम बचपन को देख कर न जाने वही खड़ा रहा
अपने बचपन की यादो मे मैं खोता जा रहा था, माँ के कदमो की आहट, वो लोरी बहना से लड़ना सब याद आ रहा था
दरवाज़े बंद होता जा रहा था उस तहखाने मैं अँधियारा ला रहा था
मैंने अपने बचपन की तरफ़ कदम बढाया,
बचपन की तरफ़ बस चलते जा रहा था नजाने वो नन्हा शैतान क्यों दूर भागे जा रहा था
मैं हर पल उसके करीब जाना चाहता था वो चंचल मुझे इधर उधर भागता था,
थोडी देर बाद वो मेरी पकड़ मैं आ गया, और मेरे इस ज़हन के वीरान माकन मैं उजियाला आ गया
वो खुशबू पूरे घर मैं फ़ैल गई, रिश्तो की वो चादर पहले से कम नंगी हो गई, धागों ने आब जुड़ना शुरू कर दिया
घर फ़िर से नई रौशनी से खिला, मेरा मासूम बचपन जब मुझसे फ़िर मिला
फ़िर से माडर्न लाइफ मैं जाना हैं आब मुझे, आशा हैं ये मासूम बचपन मुझ मैं जिंदा रहे कभी छोडे न मुझे
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बिरेन भाटिया

3 comments:

Nimit Jain said...

Bada hi haseen Khayal hai Biren miyaan... mazaa aa gaya padh ke... soch raha hoon mian bhi uss darwaaze ke peeche chupe apne astitwa ki khoj karne nikal padoon... shyad meri bhi iss neeras zindgi main zeene ka kuch maksad mil jaaye!

Anonymous said...

hey...well written... you have described the modern materialistic n the hollow life in a very nice way.... good work...

soniya said...

hey.. glad to know that u r also frm bhilai n write so well... try sending ur writting to "aha zindagi" its an amazing magazine... ur work will definatly get appreciated there... al; the best..

the poison in me

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Bhilai/Kota/Mumbai, Chattisgarh/Rajasthan/Maharashtra, India
I AM A Restless soul a dreamer .....wanna be the best ... ....singing,,, talking ,,,, chatting ,,,,, photography ,,, Sketching ...trekking. DRAMATICS (ACTING/Writing/Direction)....etc etc...these things define me ! Peace! Change the world